Poem of Umesh chandra srivastava
गंग तीर मधु माघ महीना ,
दरस-परस सब विधिक सुदीना।
जो आवत इन माघइ भाई ,
वह नर पुण्य बहुत बिधि पाई।
यह मत सुमत पुराणहि गाई ,
जन-मत कहहिं बहुत अधिकाई।
राम अनुज संग सीतहि आई ,
भरद्वाज मुनि अतिसुख पाई।
गावहिं तुलसिदास यह वचना ,
उन सम कवन कवि करै रचना।
बहुविधि तुलसी दास यह गावा ,
राम चरण वह अति-सुख पावा।
कहत-गुनत तुलसी बहुभाखा ,
राम से अधिक नाहिं कोउ राखा।
राम दरस करि मज्जन पहिले,
तुलसिदास रामहिं पग गहिले।
(शेष फिर कभी.... )
उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
Poem of Umesh chandra srivastava
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