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Thursday, May 31, 2018

‘प्रकृति’ कविता संग्रह से -12


A Poem of Umesh chandra srivastava 

तुम प्रकृति , पुरुष स्वरूप हो ,
तुम जानते हो ‘बीज’ महत्व। 
बिना ‘बीज’ के निज वसुधा मैं ,
क्या कर लूंगी , सब जाने ?

नारी का अस्तित्व पुरुष से ,
पुरुष अधूरा है नारी बिन। 
जीवन के इस धुरी चक्र में ,
दोनों का सहयोग बड़ा है। 

जितने भी हैं जीव जगत में ,
जड़ , पदार्थ , हिम , बंजर भू।
हम दोनों की सभी प्रतीती ,
हम दोनों समभाव रहें। 

हम दोनों में झगड़ भी होता ,
नयनों से बहता स्रोता। 
पर हम सम्भल तुरंत ही जाते ,
क्योंकि हम दो एक ही हैं।   (धारावाहिक , आगे कल )


-उमेश चन्द्र श्रीवास्तव
 A Poem of Umesh chandra srivastava 

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