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Friday, August 31, 2018

तुम साँझ पहर

A poem of Umesh chandra srivastava

तुम साँझ पहर
चुपके-चुपके
कुछ वस्त्र आदि
हल्के-फुल्के
कुछ अधर
नयन छलके-छलके
अतिरेक पवन का झोंका बन
बन फूल कमल
तुम आ जाना।
नाज़ुक सी नरम कलाई में
चूड़ी खनके , पायल बाजे
सब मदमाती अवगुंठन से
तुम निशा भवन में आ जाना।
तब देखो-कैसे प्रेम पुलक
सरसायेगा इस मौसम में
रुनझुन सारा , तन-मन होगा
आलोक शान्त का फैलेगा
दोनों प्राणी के सुख-दुःख कट
आनंदमयी वह क्षण होगा।
तुम साँझ पहर
चुपके-चुपके।





उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
A poem of Umesh chandra srivastava 

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