poem by Umesh chandra srivastava
आज पाती आ गयी -उसमें लिखा।
चल पड़ो उस ओर-तुमने क्या किया ?
सब वसूलों का यहाँ हिसाब दो।
उस नियंता के समक्ष सुविचार दो।
पूछेगा-जीवन में तुमने क्या किया ?
कितनों को सन्मार्ग तुमने है दिया।
तब बताओ क्या कहोगे तुम भला।
इसलिए सुविचार जीवन की कला।
और इसमें ही रमों आगे बढ़ो।
सब मिलेगा जिस लिए जीवन मिला।
आज पाती आ गयी -उसमें लिखा।
चल पड़ो उस ओर-तुमने क्या किया ?
सब वसूलों का यहाँ हिसाब दो।
उस नियंता के समक्ष सुविचार दो।
पूछेगा-जीवन में तुमने क्या किया ?
कितनों को सन्मार्ग तुमने है दिया।
तब बताओ क्या कहोगे तुम भला।
इसलिए सुविचार जीवन की कला।
और इसमें ही रमों आगे बढ़ो।
सब मिलेगा जिस लिए जीवन मिला।
उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
poem by Umesh chandra srivastava

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