poem by Umesh chandra srivastava
माँ का रूप तो चंदा-सूरज ,
माँ की गोद तो धरती है।
माँ का प्रेम गगन सा ऊँचा ,
माँ की सोच पातालपुरी।
माँ का दूध अमर अमृत है ,
माँ की गोद बसंत ऋतु।
माँ का दर्पण मुख-खुब सुन्दर-
उसमें जो चाहो देखो।
माँ का प्रेम दुलार हमेशा-
बच्चों में स्फूर्ति भरे।
माँ के चलते बच्चा बढ़ता-
जग में नाम करे रोशन।
माँ ही तो वह समय-वमय है ,
बच्चों की हितकारक माँ।
माँ से ही सब सपने खिलते,
माँ से ही सब रीति-रिवाज।
माँ बिन जग में कुछ भी नहीं है,
माँ ही जीवन का सरगम।
माँ तो गीत-संगीत वही है ,
माँ ही कविता की पतवार।
उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
poem by Umesh chandra srivastava
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