poem by Umesh chandra srivastava
[१]
ज़रा लब को तो खोलो ,प्यार से दो बात कर लो तुम।
पुरानी रंजिशों को छोड़ ,कुछ सौगात कर लो तुम।
नहीं तुम हमसे मत बोलो-ज़रा इस ओर तो देखो।
सुनाई देगा जीवन में ,वही किस्सा पुराना है।
                            
[२]
अगर में 'औ' मगर में ,ज़िंदगी को क्यों गंवाते हो।
चलेंगे साथ का दावा ,ज़रा पैबंद तो खोलो।
ज़रा सी आँधियों में तुम यू हीं सिमटे ,हो रूठे हो।
ये जीवन कंटकों का जाल इसको पार कर लो तुम।
[३]
दवा का क्या असर होता ,तुम तो डाक्टर ठहरे।
अगर नासूर हो जाए ,बताओ क्या करें तब हम।
फ़क़त एक बात को बांधे हुए तुम रूठ के बैठे।
इशारों में अगर समझो तुम्हीं तो यार हो अपने।
[१]
ज़रा लब को तो खोलो ,प्यार से दो बात कर लो तुम।
पुरानी रंजिशों को छोड़ ,कुछ सौगात कर लो तुम।
नहीं तुम हमसे मत बोलो-ज़रा इस ओर तो देखो।
सुनाई देगा जीवन में ,वही किस्सा पुराना है।
[२]
अगर में 'औ' मगर में ,ज़िंदगी को क्यों गंवाते हो।
चलेंगे साथ का दावा ,ज़रा पैबंद तो खोलो।
ज़रा सी आँधियों में तुम यू हीं सिमटे ,हो रूठे हो।
ये जीवन कंटकों का जाल इसको पार कर लो तुम।
[३]
दवा का क्या असर होता ,तुम तो डाक्टर ठहरे।
अगर नासूर हो जाए ,बताओ क्या करें तब हम।
फ़क़त एक बात को बांधे हुए तुम रूठ के बैठे।
इशारों में अगर समझो तुम्हीं तो यार हो अपने।
उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
poem by Umesh chandra srivastava 

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