month vise

Friday, May 12, 2017

ओ पाखी ,पाखी

poem by Umesh chandra srivastava

नयन तुम्हारे बेमिसाल ,ओ पाखी ,पाखी।
इसमें मिले है खुमार ,ओ पाखी ,पाखी।
नयनों का विचित्र है भाव,ओ पाखी ,पाखी।
इसमें ममता ,दुलार ,ओ पाखी ,पाखी।
इसमें है प्रेम-इज़हार ,ओ पाखी ,पाखी।
खोये-खोये क्यों हैं आज ,ओ पाखी ,पाखी।
कुछ तो करो ऐतबार ,ओ पाखी ,पाखी।
कहाँ गयी तुम गुलज़ार ,ओ पाखी ,पाखी।






उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
poem by Umesh chandra srivastava 

No comments:

Post a Comment

काव्य रस का मैं पुरुष हूँ

A poem of Umesh Srivastava काव्य रस का मैं पुरुष हूँ गीत गाने आ गया | खो रही जो बात मैं उसको बताने आ गया | रात चंदा ने चकोरी से कहा तुम जान ...