poem by Umesh chandra srivastava
(१)
कमल नयन ,सुरभित किरण ,प्रतिदिन होता प्रात।
जल-कल पर बिम्बित हुआ ,प्रकृति का अनुपात।
जल लेकर कमली चली ,सुदृढ़ बदन चितचोर।
आओ मिल सब देखलें ,इसका सुन्दर स्रोत।
(२)
आते मन भाव में ,अकुलाहट चुपचाप।
धीरे-धीरे शब्द का-बनता है परताप।
बिम्ब गढ़े क्या जायेंगे ,खुद ही करेंगे बात।
ऐसे में तन बेसुधा ,रचने लगा सुलाप।
(१)
कमल नयन ,सुरभित किरण ,प्रतिदिन होता प्रात।
जल-कल पर बिम्बित हुआ ,प्रकृति का अनुपात।
जल लेकर कमली चली ,सुदृढ़ बदन चितचोर।
आओ मिल सब देखलें ,इसका सुन्दर स्रोत।
(२)
आते मन भाव में ,अकुलाहट चुपचाप।
धीरे-धीरे शब्द का-बनता है परताप।
बिम्ब गढ़े क्या जायेंगे ,खुद ही करेंगे बात।
ऐसे में तन बेसुधा ,रचने लगा सुलाप।
उमेश चंद्र श्रीवस्तव -
poem by Umesh chandra srivastava
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