A poem by Umesh chandra srivastava
कहो भारती कैसी हो ,
इस जग के सब ,
लोक लुभावन ,
नारे में- तुम कैसी हो।
कहो भारती कैसी हो।
कहो भारती कैसी हो ,
इस जग के सब ,
लोक लुभावन ,
नारे में- तुम कैसी हो।
कहो भारती कैसी हो।
नभ का तारा टूट रहा है ,
लोक तंत्र तो छूट रहा है। 
वादे-नारों की झुरमुट में ,
प्रसन्नचित क्या रहती हो ? 
            कहो भारती कैसी हो। 
क्या भारत एकल पथ डोले ,
समवेती स्वर को ही छोड़े ,
हिन्दू-मुस्लिम-सिक्ख-इसाई ,
आपस में सब भाई-भाई। 
अब क्या यह नाता ही मोड़ा ,
क्या कहती सब सहती हो ?
               कहो भारती कैसी हो। 
उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
A poem by Umesh chandra srivastava 

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