A poem of Umesh chandra srivastava
कहो भारती कैसी हो ,
आँखों में अंजन की धारा।
मस्त हवा का अद्भुत नारा ,
क्या कहती हो कैसी हो।
जब तुम मुक्त हुई थी उनसे ,
कारापन कुछ दूर हुआ था।
अब बोलो तुम कैसी हो।
वह दूजे का दोहन करते ,
बड़ी आपदा झेल चुकी तुम।
अब बोलो तुम कैसी हो।
कहो भारती कैसी हो। (क्रमशः-कल )
कहो भारती कैसी हो ,
आँखों में अंजन की धारा।
मस्त हवा का अद्भुत नारा ,
क्या कहती हो कैसी हो।
जब तुम मुक्त हुई थी उनसे ,
कारापन कुछ दूर हुआ था।
अब बोलो तुम कैसी हो।
वह दूजे का दोहन करते ,
बड़ी आपदा झेल चुकी तुम।
अब बोलो तुम कैसी हो।
कहो भारती कैसी हो। (क्रमशः-कल )
उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
A poem of Umesh chandra srivastava
No comments:
Post a Comment