A poem of Umesh chandra srivastava
उस नए कवि की ,
इस कवि ने कविता देखी।
पढ़ी और कहा ,
कविता अच्छी है ,
लेकिन कसाव नहीं है।
सजावट-बुनावट का आभाव है ,
नए कवि ने पूछा ,
यह क्या बला है ?
तो उस कवि ने बताया-
जैसे बढ़ई गढ़ता है ,
मेज कुर्सी व अन्य ,
बनाने के बाद ,
उसको फिनिशिंग टच देता है।
सनमाइका लगाता है ,
बारीकी से कोना-अतरा ,
चिकना करता है।
बस वही कमी है इस कविता में -
नया कवि सुनता रहा।
और उस कवि की कविता में ,
ढूंढता-रहा ,
चिकनाई और कसाव।
उस नए कवि की ,
इस कवि ने कविता देखी।
पढ़ी और कहा ,
कविता अच्छी है ,
लेकिन कसाव नहीं है।
सजावट-बुनावट का आभाव है ,
नए कवि ने पूछा ,
यह क्या बला है ?
तो उस कवि ने बताया-
जैसे बढ़ई गढ़ता है ,
मेज कुर्सी व अन्य ,
बनाने के बाद ,
उसको फिनिशिंग टच देता है।
सनमाइका लगाता है ,
बारीकी से कोना-अतरा ,
चिकना करता है।
बस वही कमी है इस कविता में -
नया कवि सुनता रहा।
और उस कवि की कविता में ,
ढूंढता-रहा ,
चिकनाई और कसाव।
उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
A poem of Umesh chandra srivastava
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