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Friday, March 23, 2018

माँ का दरबार

A poem of Umesh chandra srivastava

आज माँ के दरबार गया ,
भीड़ , भक्त , पण्डे ,
और पुलिस के डंडे ,
सब दिखा ,
लेकिन ,
नहीं दिखा वह लगाव !
वह कसाव ,
वह पड़ाव ,
जिसके लिए ,
लोग आते हैं माँ के दरबार में।
जगह-जगह दिखे ,
सियासी पोस्टर ,
बैनर से पटे रास्ते ,
संकरी गलियां ,
और वहाँ सजी ,
दुकानों की प्रतिस्पर्धाएं।
कोई पांच का ,
नारियल बेच रहा ,
कोई तीन का ,
लेकिन कुल मिला कर ,
 इक्यावन से कम नहीं ,
था पूजा-प्रसाद का सामान।
दर्शन कराने को - पंडों की आतुरता ,
बौखलाए-दर्शनार्थियों की बिह्वलता ,
और पुलिसाई सांठ-गाँठ ,
सब दिखा।
लेकिन-आस्था और भक्ति का ,
वह रससिक्त भाव ,
गायब मिला।






  उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
A poem of Umesh chandra srivastava 

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