A poem of Umesh chandra sriasvatav
गीत गाओ सजन ,
मुस्कुराओ सजन।
इस ज़माने में,
इसकी ज़रुरत बहुत।
सब लपेटे में हैं ,
सब समेटे में हैं।
बांछें अपनी खिलने में ,
सब व्यस्त हैं।
यह जो दस्तूर है ,
अब चलन हो गया ,
जनता सोए या रोए ,
नेता मगन हो गया।
बात उसकी सुनो ,
कुछ भी न तुम कहो ,
सब लपेटे में-
लिपटा गगन हो गया।
कुछ तो जागो सजन ,
कुछ तो बोलो सजन।
वरना यह सब लुटेरे ,
सभी लूट कर ,
अपना दामन भरेंगे ,
यह 'छक' छूटकर।
इनको कुछ भी नहीं ,
निज से है वास्ता।
गीत गाओ सजन ,
मुस्कुराओ सजन।
इस ज़माने में,
इसकी ज़रुरत बहुत।
गीत गाओ सजन ,
मुस्कुराओ सजन।
इस ज़माने में,
इसकी ज़रुरत बहुत।
सब लपेटे में हैं ,
सब समेटे में हैं।
बांछें अपनी खिलने में ,
सब व्यस्त हैं।
यह जो दस्तूर है ,
अब चलन हो गया ,
जनता सोए या रोए ,
नेता मगन हो गया।
बात उसकी सुनो ,
कुछ भी न तुम कहो ,
सब लपेटे में-
लिपटा गगन हो गया।
कुछ तो जागो सजन ,
कुछ तो बोलो सजन।
वरना यह सब लुटेरे ,
सभी लूट कर ,
अपना दामन भरेंगे ,
यह 'छक' छूटकर।
इनको कुछ भी नहीं ,
निज से है वास्ता।
गीत गाओ सजन ,
मुस्कुराओ सजन।
इस ज़माने में,
इसकी ज़रुरत बहुत।
उमेश चंद्र श्रीवास्तव-
A poem of Umesh chandra sriasvatav
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