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Monday, March 12, 2018

गीत

A poem of Umesh chandra sriasvatav

गीत गाओ सजन ,
मुस्कुराओ सजन।
इस  ज़माने में,
इसकी ज़रुरत बहुत।

सब लपेटे में हैं ,
सब  समेटे में हैं।
बांछें अपनी खिलने में ,
सब व्यस्त हैं।
यह जो दस्तूर है ,
अब  चलन हो गया ,
जनता सोए या रोए ,
नेता मगन हो गया। 
बात उसकी सुनो ,
कुछ भी न तुम कहो ,
सब लपेटे में-
लिपटा गगन हो गया।

कुछ तो जागो सजन ,
कुछ तो बोलो सजन।
वरना यह सब लुटेरे ,
सभी लूट कर ,
अपना दामन भरेंगे ,
यह 'छक' छूटकर।
इनको कुछ भी नहीं ,
निज से है वास्ता।

          गीत गाओ सजन ,
          मुस्कुराओ सजन।
          इस  ज़माने में,
          इसकी ज़रुरत बहुत।



  उमेश चंद्र श्रीवास्तव- 
A poem of Umesh chandra sriasvatav 

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