A poem of Umesh chandra srivastava
राम राज्य का कल्प ,
तुम्हें बतलाना होगा।
मंदिर का निर्माण ,
वहीं करवाना होगा।
जहाँ राम का रसमंजन हो ,
जहाँ राम की बेल बढे ,
जहाँ राम का गुन चर्चित ,
व्यवहारों में वह अर्पित हो ,
वही भाव के तार,
तुम्हें फैलाना होगा।
सीता का व्यवहार ,
नारी का प्यार ,
प्रगति का सार ,
सभी झंकार तुम्हें ,
बतलाना होगा।
कृष्ण की सीख ,
गीत में प्रीत ,
रीत में हीत ,
तुम्हें सिखलाना होगा।
भ्रमित संगीत ,
यह टालू नीति ,
सभी सुलझाना होगा।
यह अपना देश ,
मुखर प्रदेश ,
बाँट की नीति ,
हाट की प्रीत ,
सभी बिसराना होगा।
राम राज्य का कल्प ,
तुम्हें बतलाना होगा।
राम राज्य का कल्प ,
तुम्हें बतलाना होगा।
मंदिर का निर्माण ,
वहीं करवाना होगा।
जहाँ राम का रसमंजन हो ,
जहाँ राम की बेल बढे ,
जहाँ राम का गुन चर्चित ,
व्यवहारों में वह अर्पित हो ,
वही भाव के तार,
तुम्हें फैलाना होगा।
सीता का व्यवहार ,
नारी का प्यार ,
प्रगति का सार ,
सभी झंकार तुम्हें ,
बतलाना होगा।
कृष्ण की सीख ,
गीत में प्रीत ,
रीत में हीत ,
तुम्हें सिखलाना होगा।
भ्रमित संगीत ,
यह टालू नीति ,
सभी सुलझाना होगा।
यह अपना देश ,
मुखर प्रदेश ,
बाँट की नीति ,
हाट की प्रीत ,
सभी बिसराना होगा।
राम राज्य का कल्प ,
तुम्हें बतलाना होगा।
उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
A poem of Umesh chandra srivastava
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