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Wednesday, May 16, 2018

'प्रकृति' कविता संग्रह से - 5

A poem of Umesh chandra srivastava


प्रेम , सुधा , करुणा ही तुम हो ,
तुम्ही विरह , संयोग हो तुम।
तुम्ही प्रेम की प्रियतम मधुमय ,
तुम्हीं ह्रदय का कम्पन हो।

तुम्हीं मुखों की सुन्दर लाली ,
तुम्हीं अधर की प्यास हो।
तुम्हीं बदन की मदन बनी हो ,
तुम्हीं रती , मधुमास हो।

तुम्हीं लिंग और योनि तुम्हीं हो ,
काम और भोग हो तुम।
प्रकृति तुम्हारा जग नर्तन है ,
तुम्हीं प्रकृति परिवर्तन हो।

तुम्हीं राम हो ,तुम्हीं कृष्ण हो ,
तुम्हीं रुक्मणि 'औ' सीता।
तुम्हीं ब्रह्माणी , तुम्हीं सती हो ,
तुम्हीं हो दुर्गा , चंडी हो तुम। ( धारावाहिक , आगे कल )





उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
A poem of Umesh chandra srivastava 

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