A poem of Umesh chandra srivastava
अगर तुम्हारा साथ न मिलता ,
तो मेरा अस्तित्व कहाँ।
बहुत घूमता शोर मचता ,
पर तुम एक जगह स्थिर।
माँ का दर्जा तुमने पाया ,
सत्य तुम्हारा आकर्षण।
तेरे बिन यह जगत अधूरा ,
तेरा ही सब प्रत्याकर्षण।
धरती , धरा , वसुधा ,वसुंधरा ,
न जाने कितने हैं नाम।
पर यह सत्य बात पहचानों ,
पूरे जग की तू आधार।
तुझ पर डोले लम्पट , कामी ,
साधु-संत और मनुजाधार।
लेकिन तुम खामोश ही रहती ,
विचरण करने देती सुखसार। (धारावाहिक , आगे कल )
अगर तुम्हारा साथ न मिलता ,
तो मेरा अस्तित्व कहाँ।
बहुत घूमता शोर मचता ,
पर तुम एक जगह स्थिर।
माँ का दर्जा तुमने पाया ,
सत्य तुम्हारा आकर्षण।
तेरे बिन यह जगत अधूरा ,
तेरा ही सब प्रत्याकर्षण।
धरती , धरा , वसुधा ,वसुंधरा ,
न जाने कितने हैं नाम।
पर यह सत्य बात पहचानों ,
पूरे जग की तू आधार।
तुझ पर डोले लम्पट , कामी ,
साधु-संत और मनुजाधार।
लेकिन तुम खामोश ही रहती ,
विचरण करने देती सुखसार। (धारावाहिक , आगे कल )
उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
A poem of Umesh chandra srivastava
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