month vise

Thursday, May 24, 2018

'प्रकृति' कविता संग्रह से - 9

A poem of Umesh chandra srivastava


अगर तुम्हारा साथ न मिलता ,
तो मेरा अस्तित्व कहाँ।
बहुत घूमता शोर मचता ,
पर तुम एक जगह स्थिर।

माँ का दर्जा तुमने पाया ,
सत्य तुम्हारा आकर्षण।
तेरे बिन यह जगत अधूरा ,
तेरा ही सब प्रत्याकर्षण।

धरती , धरा , वसुधा ,वसुंधरा ,
न जाने कितने हैं नाम। 
पर यह सत्य बात पहचानों ,
पूरे जग की तू आधार।

तुझ पर डोले लम्पट , कामी ,
साधु-संत और मनुजाधार।
लेकिन तुम खामोश ही रहती ,
विचरण करने देती सुखसार। (धारावाहिक , आगे कल )




उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
A poem of Umesh chandra srivastava 

No comments:

Post a Comment

काव्य रस का मैं पुरुष हूँ

A poem of Umesh Srivastava काव्य रस का मैं पुरुष हूँ गीत गाने आ गया | खो रही जो बात मैं उसको बताने आ गया | रात चंदा ने चकोरी से कहा तुम जान ...