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Thursday, May 3, 2018

हे तुम मेरी प्राण-हाँण सब

A poem of Umesh chandra srivastava 


हे तुम मेरी प्राण-हाँण सब ,
रक्त-मांस-पेशी हो तुम। 
अंदर-बाहर की करुणा तुम ,
भाव-स्वभाव में गुमसुम तुम। 

कहो , कहाँ तुम खोज रही हो ,
सब आनंद तो भीतर है। 
रास-रंग-सब तरल-ठोस तुम,
तुम-ही-तुम केवल तुम हो। 

कहाँ ढूंढती जंगल , उपवन ,
शहर-गाँव पखडंडी पर। 
गगन-धरा सब मस्त-पवन में ,
जल , उर्बी में तुम गुमसुम। 

अरे ! प्राण की वेग तुम ही हो ,
तुम ही हो संवेदन सब। 
सारे रस की खान तुम ही हो ,
तुम ही हो सकल ब्रह्माण्ड। 

 




उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
A poem of Umesh chandra srivastava 

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