A poem of Umesh chandra srivastava
हे तुम मेरी प्राण-हाँण सब ,
रक्त-मांस-पेशी हो तुम।
अंदर-बाहर की करुणा तुम ,
भाव-स्वभाव में गुमसुम तुम।
कहो , कहाँ तुम खोज रही हो ,
सब आनंद तो भीतर है।
रास-रंग-सब तरल-ठोस तुम,
तुम-ही-तुम केवल तुम हो।
कहाँ ढूंढती जंगल , उपवन ,
शहर-गाँव पखडंडी पर।
गगन-धरा सब मस्त-पवन में ,
जल , उर्बी में तुम गुमसुम।
अरे ! प्राण की वेग तुम ही हो ,
तुम ही हो संवेदन सब।
सारे रस की खान तुम ही हो ,
तुम ही हो सकल ब्रह्माण्ड।
उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
A poem of Umesh chandra srivastava
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