A poem of Umesh chandra sriavstava
(मजदूर दिवस पर विशेष )
मजबूर नहीं , मजदूर हूँ मैं ,
है आज दिवस मकबूल हूँ मैं।
सदियों से हमारा महत्त्व बड़ा ,
कोई माने न माने-मैं हूँ तू खड़ा।
सब लोग लोग कहें -मुझसे दुनिया ,
पर मान नहीं-अब तक है हुआ।
मैं चाहता हूँ-सब लोग कहें।
जीवन के सरसाये में रहें।
है कौन भला-जो बगैर मेरे ,
संसार में मेरा रूप ढला ।
अधिकार हमारा-रहा हरदम ,
हम मौन रहे , यह कौन कहे।
तुम गर हो हिमायती मेरे सखा ,
तो बुलंद करो-मेरा रुख हो बुलंद।
(मजदूर दिवस पर विशेष )
मजबूर नहीं , मजदूर हूँ मैं ,
है आज दिवस मकबूल हूँ मैं।
सदियों से हमारा महत्त्व बड़ा ,
कोई माने न माने-मैं हूँ तू खड़ा।
सब लोग लोग कहें -मुझसे दुनिया ,
पर मान नहीं-अब तक है हुआ।
मैं चाहता हूँ-सब लोग कहें।
जीवन के सरसाये में रहें।
है कौन भला-जो बगैर मेरे ,
संसार में मेरा रूप ढला ।
अधिकार हमारा-रहा हरदम ,
हम मौन रहे , यह कौन कहे।
तुम गर हो हिमायती मेरे सखा ,
तो बुलंद करो-मेरा रुख हो बुलंद।
उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
A poem of Umesh chandra sriavstava
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