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Monday, May 21, 2018

'प्रकृति' कविता संग्रह से - 6

A poem of Umesh chandra srivastava

नाम अनंत तुम्हारा जग में ,
तुम बयार हो , तुम सरिता।
मन के सारे भाव तुम्हीं हो ,
तुम ही जीव जगत गर्विता।

तुम्हीं धुप हो , तुम्हीं अँधेरा ,
तुम्हीं साँझ हो , तुम ही सुबह।
 तप्त दोपहरी , रात तुम्हीं हो ,
तुम ही मध्य हो , तुम हो उदिता।

सर-सर-सर बयार तुम्हीं हो ,
धक-धक-धक अग्नि तुम हो।
शत-शत शीतल रूप तुम्हीं हो ,
तुम ही हो पावन सुर सरिता।

अंग-अंग सब रोम तुम्हीं हो ,
धक्-धक्-धक् धड़कन हो तुम।
थर-थर-थर कम्पन भी तुम हो ,
खिल-खिल-खिल खिलना हो तुम।


उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
A poem of Umesh chandra srivastava 

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