A poem of Umesh chandra srivastava
नाम अनंत तुम्हारा जग में ,
तुम बयार हो , तुम सरिता।
मन के सारे भाव तुम्हीं हो ,
तुम ही जीव जगत गर्विता।
तुम्हीं धुप हो , तुम्हीं अँधेरा ,
तुम्हीं साँझ हो , तुम ही सुबह।
तप्त दोपहरी , रात तुम्हीं हो ,
तुम ही मध्य हो , तुम हो उदिता।
सर-सर-सर बयार तुम्हीं हो ,
धक-धक-धक अग्नि तुम हो।
शत-शत शीतल रूप तुम्हीं हो ,
तुम ही हो पावन सुर सरिता।
अंग-अंग सब रोम तुम्हीं हो ,
धक्-धक्-धक् धड़कन हो तुम।
थर-थर-थर कम्पन भी तुम हो ,
खिल-खिल-खिल खिलना हो तुम।
नाम अनंत तुम्हारा जग में ,
तुम बयार हो , तुम सरिता।
मन के सारे भाव तुम्हीं हो ,
तुम ही जीव जगत गर्विता।
तुम्हीं धुप हो , तुम्हीं अँधेरा ,
तुम्हीं साँझ हो , तुम ही सुबह।
तप्त दोपहरी , रात तुम्हीं हो ,
तुम ही मध्य हो , तुम हो उदिता।
सर-सर-सर बयार तुम्हीं हो ,
धक-धक-धक अग्नि तुम हो।
शत-शत शीतल रूप तुम्हीं हो ,
तुम ही हो पावन सुर सरिता।
अंग-अंग सब रोम तुम्हीं हो ,
धक्-धक्-धक् धड़कन हो तुम।
थर-थर-थर कम्पन भी तुम हो ,
खिल-खिल-खिल खिलना हो तुम।
उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
A poem of Umesh chandra srivastava
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