A poem of Umesh chandra srivastava
तुम ही मन में वेग जगाती ,
आशाओं की सरसों फूल।
इधर-उधर जीवन मन हो तो ,
प्रेम सुधा की भरती धूल।
उच्छ्वासें तुमसे ही बनती ,
मन भावन है रूप तेरा।
मद-मादन सी थिरकन तेरी ,
कितना सुन्दर मुख तेरा।
तुम हो अमर , अमरावती सी ,
ठुमुक-ठुमुक के चलती हो।
मन में बरबस भाव प्रेम का ,
सागर हिलकोरे लेता।
क्या-क्या बात बताऊं तुमको ,
रूप-रास की गागर तुम।
पूरा का पूरा सागर हो ,
रूप रास की आगर तुम। (धारावाहिक , आगे कल )
तुम ही मन में वेग जगाती ,
आशाओं की सरसों फूल।
इधर-उधर जीवन मन हो तो ,
प्रेम सुधा की भरती धूल।
उच्छ्वासें तुमसे ही बनती ,
मन भावन है रूप तेरा।
मद-मादन सी थिरकन तेरी ,
कितना सुन्दर मुख तेरा।
तुम हो अमर , अमरावती सी ,
ठुमुक-ठुमुक के चलती हो।
मन में बरबस भाव प्रेम का ,
सागर हिलकोरे लेता।
क्या-क्या बात बताऊं तुमको ,
रूप-रास की गागर तुम।
पूरा का पूरा सागर हो ,
रूप रास की आगर तुम। (धारावाहिक , आगे कल )
उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
A poem of Umesh chandra srivastava
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