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Tuesday, May 15, 2018

'प्रकृति' कविता संग्रह से - 4

A poem of Umesh chandra srivastava

तुम ही मन में वेग जगाती ,
आशाओं की सरसों फूल।
इधर-उधर जीवन मन हो तो ,
प्रेम सुधा की भरती धूल।

उच्छ्वासें तुमसे ही बनती ,
मन भावन है रूप तेरा।
मद-मादन सी थिरकन तेरी ,
कितना सुन्दर मुख तेरा।

तुम हो अमर , अमरावती सी ,
ठुमुक-ठुमुक के चलती हो।
मन में बरबस भाव प्रेम का ,
सागर हिलकोरे लेता।

क्या-क्या बात बताऊं तुमको ,
रूप-रास की गागर तुम।
पूरा का पूरा सागर हो ,
रूप रास की आगर  तुम। (धारावाहिक , आगे कल )



उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
A poem of Umesh chandra srivastava 

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