A peom of Umesh chandra srivastava
तेरे ऋणी, जगत, देव हैं ,
जिसने निर्मित किया संसार |
तू एकदम बस शांत भाव से ,
करती रहती सबका उद्धार |
तेरा रूप महाकर्षण है ,
उपवन , फूल , वनस्पतियाँ हैं |
न जाने किन-किन रत्नों की ,
खान रही सदियों से तुम |
उदधि , गंग–जमुन , गोदावरी ,
अंगणित नदियाँ आँचल में |
पोखरा , गड्ढे , पेड़-पौध से ,
तेरी गोद भरी हरदम |
तू ही देती हरियाली , खुशी ,
तेरे ही संतति हैं तेरे |
निस दिन पहर-पहर तुमको वह,
माँ का ही दर्जा देते हैं |(धारावाहिक , आगे कल)
-उमेश चन्द्र श्रीवास्तव
A peom of Umesh chandra srivastava
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