A poem of Umesh chandra srivastava
देखत माघ मकर सब कोई , सब जहँ राम राममय होइ।
राम धुनहिं गुंजहिं चहुँ ओरा , दिवस रात सब होइं चकोरा।।
चन्दन फूल अछत जग माहीं , सुरसरि तीर सबहिं सुख पाही।
जो नर ध्यान करई इन माहँइ , सो बैकुंठ जाई सुख पावइँ।।
उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
A poem of Umesh chandra srivastava
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