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Friday, January 19, 2018

अमरत्वता की तलाश

A poem of Umesh chandra srivastava

शहर से दूर ,
प्रतिष्ठान पुरी में ,
वह रहने वाला ,
प्रतिष्ठित व्यक्ति ,
लोगों के घर-आँगन ,
में तिरता ,
और अपनी ,
रचना , कहानी में ,
उन्हीं लोगों को रचता।
बानगी में बेमिसाल ,
सबके हाल चाल की ,
चिकोटी काटने वाला ,
आज रसूलाबाद घाट पर ,
चित्त-चिता पर पसरा है ,
लोग उसे देखते-कहते ,
और तमाम प्रकार ,
संगत-असंगत ,
चुटकियों से नवाज़ते।
लेकिन-वह ,
सपाट चेहरे लिखने वाला ,
आज खुद सपाट पसरा ,
पता-नहीं क्या सोचता ,
कि तभी चिता की ,
लपटों में उसका शरीर ,
पंचतत्व में विलीन ,
होने को आतुर।
नम पड़ी आँखों के बीच ,
वह धीरे-धीरे , हो गया ,
पंचतत्व में विलीन।
किन्तु उसका वह रचाव ,
अब पायेगा ,
अपना असली मुकाम।
वह नवाज़ा जाएगा ,
न जाने कितने -
संगत-असंगत ,
विचारधाराओं से।
यही तो हर व्यक्ति का ,
और उसका भी ,
होता है लक्ष्य।
शारीर चला जाता है।
व्यक्ति नहीं रुक पाता ,
लेकिन व्यक्तित्व ,
ज़िंदा रहता है ,
अपनी अमरत्वता की ,
तलाश में।




उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
A poem of Umesh chandra srivastava 

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