A poem of Umesh chandra srivastava
गंगा-जमुना-सरस्वती तीरा , जो नर बसहिं पाये भव हीरा।
राम अनुज संग भार्या आये , भारद्वाज मुनि अति हरषाये।।
यही प्रयाग की अतुलित भूमी , जुगत करत सब आवहि झूमी।
यह पुनीत माह सुखद सुहावा , आवहुँ इहाँ-नाहीं पछतावा।।
जे नर माघ मकर मह आयी , सो समझो जग में सुख पायी।
कवन-कवन मैं वर्णन करहूँ , सीता राम अनुज इहँ रहियउं।। (क्रमशः कल )
उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
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