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Sunday, January 14, 2018

माघ मेला(चौपाई)

A poem of Umesh chandra srivastava 

गंगा-जमुना-सरस्वती तीरा , जो नर बसहिं पाये भव हीरा। 
राम अनुज संग भार्या आये , भारद्वाज मुनि अति हरषाये।।

यही प्रयाग की अतुलित भूमी , जुगत करत सब आवहि झूमी। 
यह पुनीत माह सुखद सुहावा , आवहुँ इहाँ-नाहीं पछतावा।। 

जे नर माघ मकर मह आयी , सो समझो जग में सुख पायी। 
कवन-कवन मैं वर्णन करहूँ , सीता राम अनुज इहँ रहियउं।।  (क्रमशः कल )



उमेश चंद्र श्रीवास्तव -

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