A poem of Umesh chandra srivastava 
वह बड़े रुआब से कहता ,
मैं देश भक्त हूँ। 
सख्त हूँ। 
देश हित में ,
कड़े फैसले लेना ,
मेरा धर्म है। 
कर्म से देखा जाए ,
तो फैसला लेना ,
उसका मर्म है। 
यह बात और है ,
कि कुछ निजी-
पहलुओं पर ,
उसका फैसला ,
ढुलमुल है। 
ऐसे में कहा जा सकता है ,
वह मनुष्य रूप में ,
अधूरा है। 
क्योंकि सच्चा , मानव ,
वही है-जो ,
जो भी कहे ,
अंदर-बाहर एक सामान हो ,
वरना उसका सख्त होना ,
बेमानी है। 
निराधार है। 
बेकार है। 
 उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
A poem of Umesh chandra srivastava 

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