A poem of Umesh chandra srivastava
तेरा हाथ चाहूँ , लगन चाहता हूँ ,
तेरा साथ जीवन सजन चाहता हूँ।
वह थे राम-सीता धरम के धुरंधर ,
वही मीरा प्रेम-अगन चाहता हूँ।
वह राधा रहीं ,नाते में कुछ भी कृष्णा ,
तुम राधा मैं मोहन-अमन चाहता हूँ।
बड़े धीर थे वह तो पूरे धुरंधर ,
लखन लाल सा मैं सहन चाहता हूँ।
सुदामा की बारी वो मीतों में उत्तम ,
उन्हीं जैसा साथी अमर चाहता हूँ।
ये दुनिया , तूफानी बहुत दौड़ करती ,
इसी में ख़ुशी का पवन चाहता हूँ।
उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
A poem of Umesh chandra srivastava
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