A Poem of Umesh chandra srivastava
माघ पुनीत माह सुख दायी , आवइ जन सब लोग लुगाई।
अचरज कछु नाहीं इहँ कोई , माया मोह तजे सबे होइ।।
घर दुआर तजि-जेजे आवहि , इहँ पर वह सब स्वर्ग मनावहि।
करम रगड़ कर ताप भी करहिं , मात पिता भ्राता सब अहहिं।।
सब कुटुंब यहीं बारहिं बारा , आवहिं नहाइ राम सुख पारा।
जग भर के सब लोगहि आवहिं , सीता राम गुनइ गुन गावहिं।। (क्रमशः कल )
माघ पुनीत माह सुख दायी , आवइ जन सब लोग लुगाई।
अचरज कछु नाहीं इहँ कोई , माया मोह तजे सबे होइ।।
घर दुआर तजि-जेजे आवहि , इहँ पर वह सब स्वर्ग मनावहि।
करम रगड़ कर ताप भी करहिं , मात पिता भ्राता सब अहहिं।।
सब कुटुंब यहीं बारहिं बारा , आवहिं नहाइ राम सुख पारा।
जग भर के सब लोगहि आवहिं , सीता राम गुनइ गुन गावहिं।। (क्रमशः कल )
उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
A Poem of Umesh chandra srivastava
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