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Friday, January 5, 2018

एक मुक्तक

A poem of Umesh chandra srivastava

तुम्हारे दर पे आता हूँ ज़रा विश्राम मिलता है ,
समाजिक द्वन्द की बातों से कुछ आराम मिलता है।
कहें अब क्या तुम्हारे पास आकर हे प्रभु हे राम ,
तुम्हारे आसरे ही यह जगत -ब्रह्माण्ड चलता है।



उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
A poem of Umesh chandra srivastava 

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