A Poem of Umesh chandra srivastava
तुम प्रकृति , पुरुष स्वरूप हो ,
तुम जानते हो ‘बीज’ महत्व।
बिना ‘बीज’ के निज वसुधा मैं ,
क्या कर लूंगी , सब जाने ?
नारी का अस्तित्व पुरुष से ,
पुरुष अधूरा है नारी बिन।
जीवन के इस धुरी चक्र में ,
दोनों का सहयोग बड़ा है।
जितने भी हैं जीव जगत में ,
जड़ , पदार्थ , हिम , बंजर भू।
हम दोनों की सभी प्रतीती ,
हम दोनों समभाव रहें।
हम दोनों में झगड़ भी होता ,
नयनों से बहता स्रोता।
पर हम सम्भल तुरंत ही जाते ,
क्योंकि हम दो एक ही हैं। (धारावाहिक , आगे कल )
-उमेश चन्द्र श्रीवास्तव