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Friday, August 12, 2016

गीत

A poem of Umesh chandra srivastava
उसकी काली आँखों में  मधुमास बहुत है ,
उसके अधरों पर मद का अहसास बहुत है ।
रोज वह आती छत  पर चुपके-चुपके देखो ,
उसके पायल में रुनझुन झंकार बहुत है ।
आकर छत  पर टहल रही है मुक्त भाव से ,
क्या पड़ता है फर्क उसे अन्य किसी चाव से ?
वह तो बस मस्ती में देखे  गगन , मही  को,
उसका ही बस नाम समझ लो देवी दुर्गा ।
आकर्षण चेहरे पर, उसके बहुत सी  रौनक ,
ढंग  हो जाते , सब ही उसको देखें टक-टक ।
वह तो कोमल, कमलदल है उसको मनो ,
इस धरती की रक्षक तुम उसको ही जानो ।
भव सागर की नैय्या अगर डूबे उतराए ,
हाथ पकड़ लो उसका , पर सहज ही होगे  ।

                                   

उमेश चंद्र श्रीवास्तव- 
A poem of Umesh chandra srivastava

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