A poem of Umesh chandra srivastava
उसकी काली आँखों में मधुमास बहुत है ,
उसके अधरों पर मद का अहसास बहुत है ।
रोज वह आती छत पर चुपके-चुपके देखो ,
उसके पायल में रुनझुन झंकार बहुत है ।
आकर छत पर टहल रही है मुक्त भाव से ,
क्या पड़ता है फर्क उसे अन्य किसी चाव से ?
वह तो बस मस्ती में देखे गगन , मही को,
उसका ही बस नाम समझ लो देवी दुर्गा ।
आकर्षण चेहरे पर, उसके बहुत सी रौनक ,
ढंग हो जाते , सब ही उसको देखें टक-टक ।
वह तो कोमल, कमलदल है उसको मनो ,
इस धरती की रक्षक तुम उसको ही जानो ।
भव सागर की नैय्या अगर डूबे उतराए ,
हाथ पकड़ लो उसका , पर सहज ही होगे ।
उसकी काली आँखों में मधुमास बहुत है ,
उसके अधरों पर मद का अहसास बहुत है ।
रोज वह आती छत पर चुपके-चुपके देखो ,
उसके पायल में रुनझुन झंकार बहुत है ।
आकर छत पर टहल रही है मुक्त भाव से ,
क्या पड़ता है फर्क उसे अन्य किसी चाव से ?
वह तो बस मस्ती में देखे गगन , मही को,
उसका ही बस नाम समझ लो देवी दुर्गा ।
आकर्षण चेहरे पर, उसके बहुत सी रौनक ,
ढंग हो जाते , सब ही उसको देखें टक-टक ।
वह तो कोमल, कमलदल है उसको मनो ,
इस धरती की रक्षक तुम उसको ही जानो ।
भव सागर की नैय्या अगर डूबे उतराए ,
हाथ पकड़ लो उसका , पर सहज ही होगे ।
उमेश चंद्र श्रीवास्तव-
A poem of Umesh chandra srivastava
A poem of Umesh chandra srivastava
No comments:
Post a Comment