month vise

Saturday, August 27, 2016

कर्मो का बंधन।

कर्मो का बंधन। 
कर्मो के बंधन है, जीवन यह सारा। 
भाग्य-वाग्य  कुछ नहीं, बेतुक की बातें ।
बहस-वहस मत करो ,कायर तुम जानो ।
गीता का उपदेश , सत्य  को पहचानो ।
मोहत्याग, धर्मनिष्ठ महिमा पहचानो ।
राम रहे कर्म रत,कृष्णा योगी सत्य है ।
उनकी मीमांसा  कर सत्य पहचानो ।
हर युग में पुरूशार्थ  ही  श्रेष्ठ रहा है  ।
कदर करो बात की, भ्रम है यह मानो  ।
चिद  का आभास करो ,चिदानंद तुम हो ।
भाव का रूप रंग इसको ही मानो ।
आनंद , सुख पाओगे कर्म रत रहो सदा ।
कर्मो की बेल को समझो 'औ' जानो।
-उमेश चंद्र श्रीवास्तव 

No comments:

Post a Comment

काव्य रस का मैं पुरुष हूँ

A poem of Umesh Srivastava काव्य रस का मैं पुरुष हूँ गीत गाने आ गया | खो रही जो बात मैं उसको बताने आ गया | रात चंदा ने चकोरी से कहा तुम जान ...