भाई से भाई कभी न लाडे ,भाईचारा को बढ़ाते चलो,।
भाई से भाई को मिलते चलो , भाई चारा बढ़ाते बढ़ो ।
द्वेष का भाव जो मन में भरे , उसको जहाँ से हटाते चलो ।
प्रेम तत्व जो अविरल है ,उसको ह्रदय से लगते चलो ।
स्वार्थ मई जो दृष्टि लगे उसको नज़र से उतारते चलो ।
देखो मिलेगा अनुपम आनंद , यही भाव को जागते चलो ।
उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
No comments:
Post a Comment