(रचना समय
– 3/08/16,3:30 )
गुप्त तुम्हारा काव्य अमर है ,
राम उपासक तुम्हें प्रणाम |
‘भारत-भारती‘ के रचनाधर्मी,
मर्यादा तुममें अविराम |
काव्य रस के सफल उपासक ,
कविता तेरी मानुजा धार |
भक्ति भावना मर्यादा है ,
कविता तेरी ओ घनश्याम |
जन्म अर्थ का मर्म बताया ,
इतिहास बिन्दु को खूब खंगाला |
उसमे से मोती चुन –चुन कर ,
लिख गए अमर किर्ति का ज्ञान |
कविता तेरी सहज सुलभ है ,
तुम तो कवि के हो निज
धाम|
हे भारत के अमर पुत्र तुम ,
तुमको करता उमेश प्रणाम |
-उमेश श्रीवास्तव
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