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Tuesday, August 2, 2016

गीत

फूल ने फूल से मुस्कुरा कर कहा,
तुम तो सुन्दर, तुम्हारी छटा है अलग। 
तुमको देखा भी जिसने वो मोहित हुआ,
तुमको देखा करे, वह खड़ा ही खड़ा। 
तुम तो प्यारो के प्यार का इज़हार हो,
तुम तो पलना 'औ' ललना का श्रृंगार हो। 
तुम हो लोगो की चाहत, तुम्हे ढूंढ़ते,
प्रेम हो, या ख़ुशी, मौको पर पूछते। 
तुम छबीली के गेसू का श्रृंगार हो,
तुम सभी नर 'औ' नारी का गलहार हो। 
तुमसे स्वागत करे, सभी निज अतिथि का,
तुमको अर्पण करे माँ के चरण कमल में। 
तुम सुहावन, मनावन की वह तार हो,
तुम सुहागन की सेजो का श्रृंगार हो। 
तुम तो महफ़िल, कथा, व्रत की वह शान हो,
बिन तुम्हारे अधूरा है जीवन हवन। 
मोतियों में गुथी, बाजूबंद तुम बनी,
कभी नारी ललाट का श्रृंगार तुम। 
तुमसे आती है जीवन में खुद रागिनी,
तुम तो प्यारे सजन की, हो सजनी भली। 
तुमपे वार, निवारा जगत झूमता,
तुम हो फूलों की रानी, महक की कली। 
फूल विहंसे तो मानों जगत खुश हुआ,
तेरे चाहत की लोगों में सुंदर कला। 
                                                 ( रचना समय - 02 /08/2016, 6:30 pm )
                                                   -उमेश  श्रीवास्तव 

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