A poem of Umesh chandra srivastava
वह पगली ,
गगरी की तरह बैठ गयी।
जब उसे ,
स्वतंत्रता दिवस पर ,
फहराए गए तिरंगे की ,
मिठाइयां दीं जा रहीं थीं।
आँखों में चमक ,
बदनों में कुलबुलाहट ,
और हाथों में ,
मजबूती पन था।
दबी-कुचली-दुत्कारी गयी ,
वह पगली ,
अब एकदम अलग थी ,
मानों वह जानती है ,
आजादी का अर्थ ,
तिरंगे का महत्व ,
और जबकि यह सब...............!
उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
A poem of Umesh chandra srivastava
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