month vise

Thursday, August 16, 2018

इस सूने-सूने से घर में

A poem of Umesh chandra srivastava



इस सूने-सूने से घर में ,
तेरी आहट प्रतिपल रहती।
मन मसोस कर रह जाता हूँ ,
तेरी चाहत प्रतिपल रहती।


भाव-भवन में स्मृति ताज़ी ,
सावन मौसम है यह पाजी।
भादव मास रसायन देता ,
विगलन कहाँ-कहाँ हंस कहती।

बड़े चाव से रस मर्दन कर ,
बड़े भाव से चितवन हर पल।
लुभा-लुभा अब भी जाता है ,
अकुलाहट पल-पल ही रहती।

मौसम का जो ऋतु छाया है ,
नवल-नवेली चाहत हंसती।
कुम्हलाया तन-मन यह सारा ,
ज़िम्मेदारी हर पल डसती।







उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
A poem of Umesh chandra srivastava 

No comments:

Post a Comment

काव्य रस का मैं पुरुष हूँ

A poem of Umesh Srivastava काव्य रस का मैं पुरुष हूँ गीत गाने आ गया | खो रही जो बात मैं उसको बताने आ गया | रात चंदा ने चकोरी से कहा तुम जान ...