A poem of Umesh chandra srivastava
राग-रंग की इस दुनिया से ,
अंग-संग की इस दुनिया से ,
नश्वर इस शारीर को त्यग कर ,
अब तो तुम तो अमर हो गए ,
अब तो तुम तो शिखर हो गए।
पञ्चतत्व के अधम जगत से ,
स्वार्थ युक्त इस मधु मंडप से।
सारा कारा हार त्याग कर ,
अविरल स्वर दे , मुखर हो गए।
अब तो तुम तो शिखर हो गए।
मुक्त कंठ से सब गाएंगे ,
विचारों का पुंज संजोंकर ,
अपनी सुक्षम धार सौंपकर ,
अब तो तुम तो सगर हो गये ,
अब तो तुम तो शिखर हो गए।
जग का सत्य शाश्वत है यह ,
जो आया है , वह जाएगा।
अपनी खुद की कीर्ति पाताका ,
जो देकर करके गया जगत से ,
उसका गान सभी गाएंगे ,
अब तुम अविरल तत्त्व हो गए।
अब तो तुम अमर हो गए ,
अब तो तुम शिखर हो गए।
उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
A poem of Umesh chandra srivastava
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