A poem of Umesh chandra srivastavca
तू है अनंत ,
सब दिग दिगन्त।
हर कण-कण में ,
तेरा वसंत।
सारे पर्वत ,
सारी नदियां ,
हर रूप स्वरुप में ,
तू अनंत।
कर्मों की बेल ,
अमर तू है।
गीता-पुराण ,
उपनिषद , ग्रथ।
तू राम-श्याम ,
तू राधा है।
कैलाश शिखर ,
कल्याण धाम ,
सब जगह ही ,
तेरा है वसंत।
तू है अनंत ,
सब दिग दिगन्त।
हर कण-कण में ,
तेरा वसंत।
सारे पर्वत ,
सारी नदियां ,
हर रूप स्वरुप में ,
तू अनंत।
कर्मों की बेल ,
अमर तू है।
गीता-पुराण ,
उपनिषद , ग्रथ।
तू राम-श्याम ,
तू राधा है।
कैलाश शिखर ,
कल्याण धाम ,
सब जगह ही ,
तेरा है वसंत।
उमेश चंद्र श्रीवास्तव-
A poem of Umesh chandra srivastavca
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