A poem of Umesh chandra srivastava
तुम साँझ पहर
चुपके-चुपके
कुछ वस्त्र आदि
हल्के-फुल्के
कुछ अधर
नयन छलके-छलके
अतिरेक पवन का झोंका बन
बन फूल कमल
तुम आ जाना।
नाज़ुक सी नरम कलाई में
चूड़ी खनके , पायल बाजे
सब मदमाती अवगुंठन से
तुम निशा भवन में आ जाना।
तब देखो-कैसे प्रेम पुलक
सरसायेगा इस मौसम में
रुनझुन सारा , तन-मन होगा
आलोक शान्त का फैलेगा
दोनों प्राणी के सुख-दुःख कट
आनंदमयी वह क्षण होगा।
तुम साँझ पहर
चुपके-चुपके।
तुम साँझ पहर
चुपके-चुपके
कुछ वस्त्र आदि
हल्के-फुल्के
कुछ अधर
नयन छलके-छलके
अतिरेक पवन का झोंका बन
बन फूल कमल
तुम आ जाना।
नाज़ुक सी नरम कलाई में
चूड़ी खनके , पायल बाजे
सब मदमाती अवगुंठन से
तुम निशा भवन में आ जाना।
तब देखो-कैसे प्रेम पुलक
सरसायेगा इस मौसम में
रुनझुन सारा , तन-मन होगा
आलोक शान्त का फैलेगा
दोनों प्राणी के सुख-दुःख कट
आनंदमयी वह क्षण होगा।
तुम साँझ पहर
चुपके-चुपके।
उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
A poem of Umesh chandra srivastava