सुत का जन्म मुबारक तुमको,
पुत्र अगर जब लायक हो।
मात-पिता की सिद्धी सफल है।
पुत्र का मान, जो जनहित हो,
वरना जीवन भर तंगी में,
बात-बात में भ्रम की रहें,
काटों सा जीवन होता।
कहने को सब अच्छा-अच्छा,
मगर टीस मन भीतर रहती।
मात-पिता का प्रथम धर्म है।
सुत को योग्य बनाये वो।
निज कहना है, पुत्र योग्य-
तब ही बनता है,
जब हम सब सतर्क रहे।
बचपन से लेकर-उसको हम-
सदा सार्थक शिक्षा दे।
भटके न रहो पर वह तो-
ऐसा मार्ग प्रशस्त्र करें।
उसकी अपनी मौलिकता हो,
अपना मत थोपे न कोई।
वह जीए जीवन अपना ही,
मात-पिता के इक्षा बल।
सुत का जन्म मुबारक तुमको,
पुत्र अगर जब लायक हो। (शेष कल )
उमेश चंद्र श्रीवास्तव
पुत्र अगर जब लायक हो।
मात-पिता की सिद्धी सफल है।
पुत्र का मान, जो जनहित हो,
वरना जीवन भर तंगी में,
बात-बात में भ्रम की रहें,
काटों सा जीवन होता।
कहने को सब अच्छा-अच्छा,
मगर टीस मन भीतर रहती।
मात-पिता का प्रथम धर्म है।
सुत को योग्य बनाये वो।
निज कहना है, पुत्र योग्य-
तब ही बनता है,
जब हम सब सतर्क रहे।
बचपन से लेकर-उसको हम-
सदा सार्थक शिक्षा दे।
भटके न रहो पर वह तो-
ऐसा मार्ग प्रशस्त्र करें।
उसकी अपनी मौलिकता हो,
अपना मत थोपे न कोई।
वह जीए जीवन अपना ही,
मात-पिता के इक्षा बल।
सुत का जन्म मुबारक तुमको,
पुत्र अगर जब लायक हो। (शेष कल )
उमेश चंद्र श्रीवास्तव
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