मैं कवि हूँ ,कविता लिखता हूँ।
कविता के खातिर जीता हूँ।
कविता है मेरे कर्मो में ,
कविता है मेरे धर्मो में ,
कविता में सोना जागना है ,
कविताई में ही रहना है।
कवि की बातो का क्या कहना ?
कविता करने वाले कितने ,
आए कविताई करके गए।
कुछ धर्म की बातें करके गए।
कुछ मर्म बता कर चले गए।
उन कवियों की कविताई में,
अपना- अपना ही विम्ब दिखे ।
उनके दर्शन की दुहाई है।
वह अच्छा लिख कर चले गए।
दुनिया तो उनको याद करे ।
उनके यादों में झूम-झूम।
अभी और आएंगे कविजन भी ,
अच्छी कविता करने वाले।
अच्छा-अच्छा कहने वाले।
दर्शन का गुच्छा खोलेंगे ।
वो भी कल होंगे कालजयी ।
नतमस्तक होंगे हम सब भी।
मैं तुम्हे सुना कर कहता हूँ ।
मैं कवि हूँ ,कविता लिखता हूँ।
कविता के खातिर जीता हूँ।
उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
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