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Monday, September 19, 2016

मैं कवि हूँ ,कविता लिखता हूँ।

मैं कवि हूँ ,कविता लिखता हूँ। 
कविता के खातिर जीता हूँ। 
कविता है मेरे कर्मो में ,
कविता है मेरे धर्मो में ,
कविता में सोना जागना है ,
कविताई में ही  रहना है। 
कवि की बातो का क्या कहना ?
कविता करने वाले कितने ,
आए कविताई करके गए। 
कुछ धर्म की बातें करके गए। 
कुछ मर्म बता कर चले गए। 
उन कवियों की कविताई में,
अपना- अपना ही विम्ब दिखे । 
उनके दर्शन की दुहाई है। 
वह अच्छा लिख कर चले गए।  
दुनिया तो उनको याद करे । 
उनके यादों में झूम-झूम। 
अभी और आएंगे कविजन भी ,
अच्छी कविता करने वाले। 
अच्छा-अच्छा कहने वाले। 
दर्शन का गुच्छा  खोलेंगे । 
वो भी कल होंगे कालजयी । 
नतमस्तक होंगे हम सब भी। 
मैं तुम्हे सुना कर कहता हूँ । 
             मैं कवि हूँ ,कविता लिखता हूँ। 
             कविता के खातिर जीता हूँ। 


उमेश चंद्र श्रीवास्तव -

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