month vise

Sunday, September 25, 2016

वही रोज आना ,वही रोज जाना।

वही रोज आना ,वही रोज जाना।
वही रोज बातों का,कहना-सुनना।

वही रोज जग की ही बातें बताना।
 समझना ,समझना ,समझ के समझना।
ये ईंगला ,ये पिंगला ,सुषुम्ना बताना।
वही रोज कबिरा का किस्सा सुनना।
वही रोज तुलसी की बातें बताना।

वही कवि की कविता में लक्षण बताना।
कहाँ कौन रस है बताना-सुनाना।
है रोला ,या मनहर या दोहा बताना।
अलंकृत है कविता इसे भी दिखाना।
है भावों का सीधा भवन है कहाँ पे।
यही बस सुनना ,यही बस दिखाना।

वही रोज आँखों का झपना-झपाना।
वही रोज लैला ,वही रोज मजनू।
वही रोज पढ़ना ,पढाना ,पढाना।
यही रोज दिन है हमारा-तुम्हारा।
नियम से तुम उठना ,उठाना-उठाना।
सुबह उठ के पहले हसाना-हसाना।
यही बात सब को बताना-सुनना।

                       वही रोज आना ,वही रोज जाना।
                       वही रोज बातों का,कहना-सुनना।
                                                                     (शेष कल. . . . )




उमेश चंद्र श्रीवास्तव -




No comments:

Post a Comment

काव्य रस का मैं पुरुष हूँ

A poem of Umesh Srivastava काव्य रस का मैं पुरुष हूँ गीत गाने आ गया | खो रही जो बात मैं उसको बताने आ गया | रात चंदा ने चकोरी से कहा तुम जान ...