'दिनकर' के जन्म दिवस पर आज।
कहना चाहूंगा कुछ तात।
राष्ट्रवाद की जो भी बातें,
'दिनकर'की कविता में है।
वही चेतना सहज तूलिका ,
आज हमारे मन में हो।
भाव-स्वभाव में समतुलता हो ,
'औ 'मंतव्य हो एकदम साफ।
यह एक बात समझनी होगी।
हम साथ राष्ट्र ध्ररोहर हैं।
जो हम करेंगे , वही भरेंगे ,
आगे आने वाले लोग।
इसी लिए दमभर कहता हूँ।
देश हमारा प्रथम हो प्रेम।
बाकी दुनियादारी जरूरी ,
जितना हो सफराये हम।
मगर देश के खातिर मित्रों -
स्वार्थ को न अपनाये हम।
देश की सत्ता में जो बैठे ,
अहंकार,मद , लोभ लिए।
उनको प्यारे सहज भाव से -
करना है बस यह अनुरोध।
पार्टी हित में बात करें वो ,
पर यह ध्यान रहे सदा।
भावी पीढ़ी, वर्तमान में ,
जो भी बोले यदा-कदा।
झूठी डींगे छोड़- छाड़ के ,
सीधी-सीधी बात कहें।
जनता को वह न भरमाये ,
धर्म 'औ' संप्रदाय लिए।
जनता को मालूम है भाई।
धर्म,संप्रदाय की बात कहाँ ,
समझ बूझ के सत्ता चलाएं ,
जिससे देश का मान बढे।
नित नूतन नव बात कहें वो ,
पर जिसमे देश हित हो।
यही निवेदन प्रेम भाव से ,
तुम सब भारत के हो लाल।
ध्वज तिरंगा लेके झूमो ,
मस्ती में तुम मलो गुलाल।
कहना चाहूंगा कुछ तात।
राष्ट्रवाद की जो भी बातें,
'दिनकर'की कविता में है।
वही चेतना सहज तूलिका ,
आज हमारे मन में हो।
भाव-स्वभाव में समतुलता हो ,
'औ 'मंतव्य हो एकदम साफ।
यह एक बात समझनी होगी।
हम साथ राष्ट्र ध्ररोहर हैं।
जो हम करेंगे , वही भरेंगे ,
आगे आने वाले लोग।
इसी लिए दमभर कहता हूँ।
देश हमारा प्रथम हो प्रेम।
बाकी दुनियादारी जरूरी ,
जितना हो सफराये हम।
मगर देश के खातिर मित्रों -
स्वार्थ को न अपनाये हम।
देश की सत्ता में जो बैठे ,
अहंकार,मद , लोभ लिए।
उनको प्यारे सहज भाव से -
करना है बस यह अनुरोध।
पार्टी हित में बात करें वो ,
पर यह ध्यान रहे सदा।
भावी पीढ़ी, वर्तमान में ,
जो भी बोले यदा-कदा।
झूठी डींगे छोड़- छाड़ के ,
सीधी-सीधी बात कहें।
जनता को वह न भरमाये ,
धर्म 'औ' संप्रदाय लिए।
जनता को मालूम है भाई।
धर्म,संप्रदाय की बात कहाँ ,
समझ बूझ के सत्ता चलाएं ,
जिससे देश का मान बढे।
नित नूतन नव बात कहें वो ,
पर जिसमे देश हित हो।
यही निवेदन प्रेम भाव से ,
तुम सब भारत के हो लाल।
ध्वज तिरंगा लेके झूमो ,
मस्ती में तुम मलो गुलाल।
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