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Tuesday, September 6, 2016

पुत्र-3

                 सुत का जन्म मुबारक तुमको, 
                 पुत्र अगर जब लायक हो। 
माना माँ का अंश पुत्र है,
पिता का भी है अंश मिला। 
जितना माँ उसको सीचती-
गर्भस्थ शिशु को, गर्भो में। 
उतना सिंचन गर बाहर  हो,
तब ही सुत अनमोल बने। 
माँ ही प्रथम गुरु है उसकी,
पिता तो गुरु दूजे ठहरे। 
माँ की छाती से वह लिपटा,
पिता पेट पर उछाले खूब। 
उसी तरह जीवन भर पालो,
खुद सुत को पोषित करके। 
सुता तुम्हारी खुदी बनेगी, 
राज्य और देश की महिमा। 
अपना परचम फहराएगी,
निज तिरंगा हाथ लिए। 
देश का मान सिखाना उसको,
देश हित में वह जिए। 
स्वार्थ वृति पनपे न उसमे,
देश के खातिर मरे सदा। 
तब ही दोनों ही अर्थो में,
मात-पिता सुख पाएंगे। 
गाँधी बाबा, नेहरू चाचा,
और सुभाष थे हुए महान। 
आज भी कीरत उनकी चलती,
धरती के थे अमर सपूत।
मात-पिता का नाम कर गए,
अपना परचम फहरा कर। 
अपना परचम फहरा कर। 
अपना परचम फहरा कर। 
                सुत का जन्म मुबारक तुमको, 
                पुत्र अगर जब लायक हो। 
                                                      -उमेश चंद्र श्रीवास्तव 

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