पेड़, मौसम ,आदमी तो-
हर जगह दिख जाएंगे।
पेड़ सदियों से खड़ा है ,
अपनी निजता को लिए।
मौसमो का क्या भरोसा ?
आज पुरवा कल है पछुंआ।
आदमी का क्या पता ?
कल वह किधर को जायेगा।
आज प्रेमी बन के आया ,
कल बहुत टकराएगा।
क्या भरोसा ?
बात ही, बातों में वह,
सब को बना जायेगा।
हर जगह दिख जाएंगे।
पेड़ सदियों से खड़ा है ,
अपनी निजता को लिए।
मौसमो का क्या भरोसा ?
आज पुरवा कल है पछुंआ।
आदमी का क्या पता ?
कल वह किधर को जायेगा।
आज प्रेमी बन के आया ,
कल बहुत टकराएगा।
क्या भरोसा ?
बात ही, बातों में वह,
सब को बना जायेगा।
उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
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