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Monday, September 12, 2016

मनु-सतुरूपा

मनु-सतुरूपा  प्रेम से, रहते थे निज धाम।
धर्म निष्ठ प्राणी दोनों ,दोनों का बस काम।
दैनिक कर्म से छूट कर , करते पूजा-पाठ।
 देव शरण में ही सदा, करते  रहते जाप।
पाप-पुण्य के अर्थ में, नहीं गंवई बात।
तप बल के ही तेज से, दोनों बने सनाथ।
उनकी पूजा से प्रसन्न, एक दिन उनके धाम।
प्रभु स्वयं आकर कहे ,बोलो मांगों वरदान।
प्रभु का दर्शन खुब किया, फिर बोले चुप चाप।
गर प्रभु देना चाहते ,तो यह दो  वरदान।
मेरे घर आकर रहो ,पुत्र बने प्रभु आप।
एवमस्तु प्रभु ने कहा, चले गए निज धाम।
आगत जोनी में प्रभु ,उनके सूत भये राम।
दशरथ बने मनु तब, सतुरूपा  कौशिल्य।
दोनों ने खूब विधि से, पालन  किया  श्रीराम।
राम प्रतापी हो गए, मानस के हैं रत्न।
तुलसी बाबा ने लिखा राम कथा विधि रंग ।

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