कोई पराया है नही, गर तुम मनो बात।
रक्त के रिश्ते हैं प्रबल, लेकिन प्रेम के साथ।
प्रेम, प्यार गर है नही, सब रिश्ते बेकार।
इसको जिसने सजोया, वही बना प्रभात।
आँसू ढरके गाल पर, जलामग्न गर हो।
प्रेम पुकारो, प्रेम से, आ जायेंगे लोग।
आजायेंगे लोग, यही जग की है थाती।
वरना घूमो फिरो, नही कोई संघातों।
-उमेश चंद्र श्रीवास्तव
रक्त के रिश्ते हैं प्रबल, लेकिन प्रेम के साथ।
प्रेम, प्यार गर है नही, सब रिश्ते बेकार।
इसको जिसने सजोया, वही बना प्रभात।
आँसू ढरके गाल पर, जलामग्न गर हो।
प्रेम पुकारो, प्रेम से, आ जायेंगे लोग।
आजायेंगे लोग, यही जग की है थाती।
वरना घूमो फिरो, नही कोई संघातों।
-उमेश चंद्र श्रीवास्तव
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