शब्द बंद ,तुम छंद बानी हो ,
तुलसी की चौपाई तुम।
कबीरा की साखी की जैसी,
सूरदास की पदावली।
तुम मीरा की प्रेम ,प्रेम हो ,
पन्त ,प्रसाद की छाया तुम।
महादेवी की विरह विरहणी,
और निराला का ओज हो तुम।
तुम तो सरस वायु बयार हो ,
अज्ञेय सी गंभीर हो तुम।
नागार्जुन की बिम्ब तुम्ही हो ,
मुक्तिबोध का अंकन तुम।
तुम्हे बताओ क्या उपमा दूं ,
घनानंद की घन हो तुम।
मालिक जायसी की 'पद्मावत ',
तुलसी की बिरवा हो तुम।
तुलसी की चौपाई तुम।
कबीरा की साखी की जैसी,
सूरदास की पदावली।
तुम मीरा की प्रेम ,प्रेम हो ,
पन्त ,प्रसाद की छाया तुम।
महादेवी की विरह विरहणी,
और निराला का ओज हो तुम।
तुम तो सरस वायु बयार हो ,
अज्ञेय सी गंभीर हो तुम।
नागार्जुन की बिम्ब तुम्ही हो ,
मुक्तिबोध का अंकन तुम।
तुम्हे बताओ क्या उपमा दूं ,
घनानंद की घन हो तुम।
मालिक जायसी की 'पद्मावत ',
तुलसी की बिरवा हो तुम।
उमेश चंद्र श्रीवास्तव -
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