काले घन से बाल तुम्हारे,
जब लहराते गालो पर।
ताल-तलैया थिरकन होती,
मन मंदिर चौबारों पर।
घुंघट का पट खोल खड़ी तुम,
बलखाती हो बयारो सी।
तुम्हे निहारु प्रेम पुंज की,
देवी मैं चौबारों पर।
तुम आलस की विजय पताका,
रुन-झुन करके आती हो।
मैं तो सिहर-सिहर उठ बैठा,
मंदिर 'औ' गुरुद्धारों पर।
तुम हो प्रेम, धर्म से ऊपर,
राग-द्वेष से मुक्त रहो।
मैं अलबेला टक-टक देखू,
तुम्हे गगन, मही ऊपर।
तुम हो प्रबल, मनुज की बल हो,
नाहक तुम्हे अबल कहते।
तुम्हे देख हर रोम-रोम का,
रुधिर उमड़ता पारो पर।
-उमेश चंद्र श्रीवास्तव
जब लहराते गालो पर।
ताल-तलैया थिरकन होती,
मन मंदिर चौबारों पर।
घुंघट का पट खोल खड़ी तुम,
बलखाती हो बयारो सी।
तुम्हे निहारु प्रेम पुंज की,
देवी मैं चौबारों पर।
तुम आलस की विजय पताका,
रुन-झुन करके आती हो।
मैं तो सिहर-सिहर उठ बैठा,
मंदिर 'औ' गुरुद्धारों पर।
तुम हो प्रेम, धर्म से ऊपर,
राग-द्वेष से मुक्त रहो।
मैं अलबेला टक-टक देखू,
तुम्हे गगन, मही ऊपर।
तुम हो प्रबल, मनुज की बल हो,
नाहक तुम्हे अबल कहते।
तुम्हे देख हर रोम-रोम का,
रुधिर उमड़ता पारो पर।
-उमेश चंद्र श्रीवास्तव
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