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Wednesday, September 7, 2016

चाँद, सूरज, गगन में सदा से यहाँ

चाँद, सूरज, गगन में सदा से यहाँ,
बस हमी हैं जो आते "औ" जाते रहे। 
बात उनकी रही तो वो है देयता,
हम तो लेने में जीवन गंवातें रहे। 
वे तापी हैं, बहुत रोज़ प्रहरी बने,
हम ख़ुशी हेतु जीवन बिताते रहे। 
हम अधिक खुश हुए "औ" अधिक चाहिए,
इसी गफलत में दुखड़ा सुनाते रहे। 
इसलिए वे बने, देयता-देवता,
हम तो नाहक में बस गुनगुनाते रहे। 
                                                      -उमेश चंद्र श्रीवास्तव 

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